Note: I had written this a few weeks earlier. An account of a previous date.
03.07.2015
अाज मैं डाकखाने गई थी। चंद दोसतों अौर दो अध्ययापिकाऔं के साथ। स्कूल के चार कदम पीछे ही है हाॅज़-खास़ का दाकखाना।
वहाँ जाकर कुछ अलग सा ही महसूस हुआ। जैसे वो चार कदम चल अपने बचपन में आ गई थी।
सातवीं कक्षा में हिंदी का कार्य मिला था कि गर्मीं कि छुट्टियों मे एक दोस्त को पत्र लिखकर पोस्ट करना है। तब इंलेंड लैटर लेने पहली बार डाकखाने की सूरत देखी थी। पापा जब काऊंटर पर खत जमा कर रहे थे तो मैं वहाँ बेंच पर बैठी एक गहरी सोच में डूबी हुई थी। कि नाजाने किस तरह भारत के एक कोने से एक कागज़ पर मामूली स्याही से कोई व्यक्ति अपने एहसास लिखता होगा अौर चंद दिनों बाद उसका मित्र वह कागज़ अपने हाथों पर पाता होगा। आजकल अगर कोइ पार्सल लेकर पोस्टमैन अाता है भी तो शायद Flipkart का भेजा हुआ औरडर होगा। खत पाकर, खोलकर पढने का वो रहस्यमयी एहसास तो डाकखाने की तरह ही लुप्त हो गया है।
आज रह गये हैं तो केवल SMSs अौर e-mails, जिंहे ना तो मैं संज्यो कर अपने मेमोरी बैग में रख सकती हूं अौर ना ही सालों बाद उनकी सुगंध से यादें ताज़ा कर सकती हूं।
ऐसे ही कुछ खयालात लिए INDIA POST के दफ़तर के सामने खड़ी थी। इतने में एक मध्यम-आयु के पुरुष आये और हमें पोस्ट-औफिस कि नयी सुविधाओं के बारे में जागरुक करने लगे। Digital India के तहद अब भारत के डाक-खाने उपलब्ध एवं बेहतर हो गये हैं। Core Banking कि सुविधाएं काफी आश्चर्यचकित लगीं। मैंने तो कभी सोचा भी नहीं था कि एक डाकखाना बैंक की तरह भी काम कर सकता है!
आखिरी कमरे से बाहर निकल रहे थे कि देखा दीवार पर कोने में एक कागज़ पर लिखकर चिपका रखा था - "हिंदी कार्यालय दिवस"। एक ग्यारहवीं कक्षा की लड़की ने उन पुरूष से पूछा कि इसका क्या मतलब है तो उन्होनें हमें बताया कि हर बुद्धवार को विधि हेतु सारा कार्य हिंदी में निभाया जाता है। पहले तो यह सुनकर चेहरे पर मुस्कान आ गयी पर फिर हैरानी ने माथा ढ़क लिया। भला ऐसा क्यों कि भारत के डाकखाने में प्रमुख भाषा हिंदी के लिए एक दिन सिद्ध किया गया है? डाकखाने जैसे बुज़ुर्ग दफ्तर में भी अगर अंग्रेजी आवश्यक हो गयी तो आखिर हिंदी प्रयोग होगी कहाँ?